Friday, July 28, 2017

कार और बाइक पर जीएसटी का असर

  जीएसटी 1 जुलाई 2017 से लागू हो चुका है. इसका कार और बाइक्स पर क्या असर होगा? आइए आपको बताते हैं कि कौन सी गाड़ियां महंगी होगी और कौन सी सस्ती.

Friday, July 14, 2017

GST Impact Insurance

जीएसटी के लागू होने के बाद इंश्योरेंस महंगा होने जा रहा है यह बात तो तय है और इसमें भी स्वास्थ्य बीमा और मोटर बीमा के सबसे ज्यादा महंगे होने की संभावना है आपको बता दें कि जीएसटी मतलब की गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स दोहरे

Wednesday, July 12, 2017

जियो डीटीएच सर्विस: Jio DTH

जियो डीटीएच सर्विस जियो प्लान और मासिक पैक :
जियो कस्टमर्स के लिए  एक अच्छी खबर है. जल्दी ही रिलायंस जिओ अपनी डायरेक्ट टू होम यानी कि DTH सर्विस लॉन्च करने वाला है. जिससे कि आप बहुत ही कम खर्च में  अपने मनपसंद चैनल देख पाएंगे.

Tuesday, July 11, 2017

GST Impact : Real estate

जीएसटी लगने के बाद रियल स्टेट को कई तरह से करो से राहत मिली है और अब प्रॉपर्टी पर केवल 12 फ़ीसदी का टैक्स देना होगा. इस तरह से ग्राहकों को प्रॉपर्टी खरीदते समय टैक्स की गणना करना आसान हो गया है.

GST Impact

जीएसटी लागू होने के बाद 81 फ़ीसदी वस्तुओं के दाम कम हो गए हैं. किंतु अगर आपको जीएसटी का फायदा लेना है तो आपको आपके खरीददारी के तौर-तरीके बदलने होंगे.

Friday, June 16, 2017

Create a Blogger Account - ब्लॉगर अकाउंट कैसे बनाएं

 क्या आप ब्लॉगर अकाउंट बनाने के लिए सोच रहे हैं? हममें से बहुत लोग अपने विचारों को ब्लॉगिंग के माध्यम से ऑनलाइन दुनिया को बताना चाहते हैं क्योंकि ब्लॉगिंग एक आसान तरीका है अपने विचारों को रखने का. आज की

Thursday, June 15, 2017

Mukhyamantri Rojgar Yozna UP

वैसे तो उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य में बहुत सारी समस्याएं हैं किंतु एक समस्या  जो की बहुत बड़ी है वह है बेरोजगारी. यह मूल रूप से एक ऐसी समस्या है  जो हर समस्या का आधार है.

Friday, May 19, 2017

Banks Hidden Charges: बैंकों के चार्ज जो आप नहीं जानते

 बैंकों मैं रखें कितना बैलेंस?
बैंक चाहते हैं कि आप अपने बैंक अकाउंट में एक मिनिमम बैलेंस बरकरार रखें. इस बैलेंस को बैंक एवरेज बैलेंस कहते हैं सभी खाताधारकों को अपने खाते में जरूरी एवरेज बैलेंस, जो कि हर बैंक में अलग-अलग होती है, रखनी पड़ती है.

Ganga: The Mother-मां गंगा


Flow of ganga in vashitha gufa Rishikesh

ऋषिकेश ने हमेशा लोगों को अपने पास बुलाया है चाहे वह संत फकीर हो या बीटल जैसे रॉकस्टार. यहां हर किसी ने अपने भगवान को ढूंढा और हर किसी ने उसे कुदरत के रूप में पाया.

Income Tax Return: फॉर्म 16

 विषय: 
  • जब आपकी कंपनी आपको देगी फॉर्म 16 तो आपको किन चीजों का ख्याल रखना है.
  • अगर आप पुरानी प्रॉपर्टी बेचकर नई प्रॉपर्टी खरीद रहे हैं जॉइंट अकाउंट पर तो हंड्रेड परसेंट कैपिटल गेन पर क्या टैक्स छूट मिलेगी?
  • क्या है प्रिजेम्पटिव टैक्स? 

Monday, May 15, 2017

Easy Home Loan: अब खरीद लो घर

अब खरीद लो घर:
हम ऐसा इसलिए कह रहे हैं क्योंकि इस समय होम लोन की दर बहुत ही कम है, सरकार ने भी होम लोंस पर देने वाले इंटरेस्ट में सब्सिडी दी है जिससे कि मकान खरीदना बहुत ही आसान हो गया है.

Monday, May 1, 2017

GST Registration कैसे करें जीएसटी रजिस्ट्रेशन?

कब कराना होगा रजिस्ट्रेशन ?
अगर आपके व्यापार का सालाना टर्नओवर 20 लाख रुपए तक है तो आपको जीएसटी में रजिस्ट्रेशन की कोई अनिवार्यता नहीं है. किंतु मेरी राय में रजिस्ट्रेशन करा लेना ही बेहतर होगा वरना आप अपना ग्राहक हो सकते हैं. उदाहरण

GST Impact : Exporter & Transporter: निर्यातको और ट्रांसपोर्टर पर जीएसटी का असर.

रजिस्ट्रेशन से संबंधित कुछ खास बातें:
  • आपका कारोबार कई राज्यों में है तो आपको हर राज्य में रजिस्ट्रेशन कराना होगा.
  • दूसरा अगर आप एक से ज्यादा कारोबार करते हैं तो आपको अलग-अलग सभी तरह के कारोबार का रजिस्ट्रेशन कराना होगा.
  • एक पैन कार्ड पर सिर्फ एक ही जीएसटी रजिस्ट्रेशन नंबर मिलेगा.

Friday, April 28, 2017

Thematic-Mutual Fund- कैसे करें निवेश?

 म्यूचुअल फंड क्या होता है?
एक उदाहरण देकर आप को समझाता हूं कि जैसे कई सारे दोस्त हैं उन्होंने थोड़ा-थोड़ा कर कर एक पूंजी इकट्ठा कर ली है और अब वह चाहते हैं कि वह इसको इन्वेस्ट करें लेकिन उनको यह जानकारी नहीं है की वह इसे कहां इन्वेस्ट करें. तो उन्होंने इसके लिए एक एक्सपर्ट से मिले और कहा कि आप हमारे पैसे को इन्वेस्ट करो, उसके बदले हम आपको फीस देंगे और इस निवेश में हुआ फायदा या नुकसान हमारा होगा.

Thursday, April 27, 2017

e-wallet, PF money से कैसे करें निवेश?


e-वालेट से म्यूचुअल फंड में निवेश:
म्यूचुअल फंड में निवेश बढ़ाने के लिए सेबी ने कई फैसले किए हैं सेबी जो कि एक शेयर मार्केट रेगुलेटर है ने e-वॉलेट पेमेंट बैंक से म्यूचल फंड में निवेश को मंजूरी दे दी है हालांकि इसके लिए ₹50 हजार प्रतिदिन की सीमा भी तय की गई है और इसके लिए म्यूचल फंड पेमेंट बैंक से ई-वॉलेट के करार को भी मंजूरी दे दी है.

H1B Visa: Impact: क्या करेंगी भारतीय आईटी कंपनियां?

ट्रंप  सरकार के निशाने पर अब भारतीय आईटी कंपनियां आ गई हैं. अपने बयानों के लिए मशहूर अमेरिकन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक बड़ा बयान दिया है अमेरिकी सरकार आउटसोर्सिंग को कम

Wednesday, April 26, 2017

ITR-Digital Signatur-Incom from other sources-Cash deposit column

जिन लोगों के बैंक अकाउंट में विदेशी पैसा जमा हुआ है उन्हें इस बार इनकम टैक्स रिटर्न भरते समय इस का ब्यौरा आयकर विभाग को देना इसके अलावा अगर आपको यह नहीं पता की कैसे मिल

Saturday, April 22, 2017

ULIP मैं इन्वेस्ट करें या ELSS में?

अगर आप  अपने बचत  के पैसे को  निवेश करने के लिए यूलिप या ईएलएसएस में निवेश करना चाहते हैं और इस दुविधा में है कि किस प्रोडक्ट का चुनाव किया जाए? किसमें हमें ज्यादा रिटर्न मिलेगा और कौन सा प्लान हमें टैक्स बेनिफिट भी देगा? तो आइए

Wednesday, April 19, 2017

हमारे पूर्वज बंदर नहीं थे

आप भी जाने अनजाने यह मानते या कहते होंगे कि हमारे पूर्वज तो साहब बंदर थे. लेकिन साहब हम तो नहीं मानते हैं कि हमारे पूर्वज बंदर थे. क्या आप विश्वास के साथ कह सकते हैं?  या किसी ने आपके मन में यह बात डाल दी है कि यही सत्य है? आइए आपको बताते हैं यह बात आई कहां से?


सबसे पहले यह बात करने वाले व्यक्ति थे डार्विन जिन्होंने हमें यह बताया कि कैसे लाखों करोड़ों सालों में बंदर की पूंछ धीरे-धीरे गायब होती रही, उसकी अक्ल बढ़ती गई और वह एक बुद्धिमान प्राणी, जिसे आज के युग में इंसान कहा जाता है, बन गया. ऐसे ही उन्होंने जिराफ  की गर्दन को भी लंबा कर दिया था. 'वाह रे डार्विन'.
एक बार आइंस्टीन से पूछा गया कि डार्विन कहते हैं कि हमारे पूर्वज बंदर थे क्या यह सही है? क्या आप इस बात से सहमत हैं? तो उन्होंने कहा यह बिल्कुल गलत बात अगर हमारे पूर्वज बंदर थे, तो आज भी कुछ बंदर ऐसे होने चाहिए थे जो आदमियों सरीखे हो और कुछ आदमी ऐसे होने चाहिए थे जो बंदरों से थोड़े बहुत मिलते हो लेकिन ऐसा कुछ नहीं है हमें आज तक ऐसा कोई मनुष्य मिला? जिसकी धीरे-धीरे पूंछ निकल रही हो. डॉक्टर के पास गया  हो कि "सर यह देखो क्या हो रहा है मेरी तो पूंछ निकल रही है, इसका इलाज करो". एक आधा बंदर भी ऐसा दिखना चाहिए जिसकी पूंछ धीरे-धीरे छोटी हो रही हो.
हमारे पूर्वज बंदर नहीं थे हमारे पूर्वज थे वह ऋषि महात्मा दधीचि कि जब देवता उनसे अस्थियां मांगने आए तो लोगों की भलाई के लिए अपना शरीर ही दान कर दिया. कहते हैं गायों ने उनके शरीर को चाटना आरंभ किया और धीरे-धीरे उनके मांस और चमड़े का  पता ही नहीं लगा और सिर्फ हड्डियां ही बच गई.
ऐसे ही महादानी रघु, असुरों का विनाश करने वाले भगवान राम, हजारों साल पहले विमान बनाने की  अद्भुत  परंपरा को शुरू करने वाले महर्षि भारद्वाज '0' का आविष्कार करने वाले आर्यभट्ट यह सभी हैं हमारे पूर्वज. विश्व का सारा ज्ञान इस धरती पर पैदा करने वाले वह ऋषि-मुनि हमारे पूर्वज हैं. हम भाग्यशाली हैं  कि इतने महान लोग  हमारे पूर्वज हैं.

जिनके पूर्वजो नहीं होते हैं वह राष्ट्र नहीं बन सकते. उदाहरण के लिए पाकिस्तान को देख लीजिए. आज पाकिस्तान अपने पूर्वजों को खोज रहा है. मोहनजोदड़ो, हड़प्पा, सिंधु घाटी सभ्यता यह सब हमारी धरोहर है. अगर हिंदुस्तान में कोई फूट ना होती, अगर हम आपस की लड़ाई में से अपनी शक्ति ना खो बैठते हैं तो 700 साल तक मुगलों ने हम पर शासन ना किया होता 

हेल्थ इंश्योरेंस: किन चीजों का रखें ध्यान? Save Tax under 80D

हेल्थ इंश्योरेंस लेते समय किन चीजों का रखें? कई बार हमें यह समस्या आती है की हमें अपने माता पिता के लिए या वाइफ के लिए अलग से हेल्थ इंश्योरेंस प्लान खरीदना पड़ता है. बहुत सारी कंपनियां स्वास्थ्य बीमा (हेल्थ इंश्योरेंस) के नाम पर एंमप्लाइज को

Tuesday, April 18, 2017

भीम आधार पेमेंट! Cashless Indian Economy

भारत सरकार का एक क्रांतिकारी कदम. भीम ऐप पर बने बायोमेट्रिक डिवाइस पर सिर्फ एक अंगूठे के फिंगरप्रिंट के जरिए आप पेमेंट कर पाएंगे. और यह ऐप आपको नहीं बल्कि दुकानदारों को डाउनलोड करना पड़ेगा.

Cashless indian economy

आइए हम आपको बताते हैं आधार पेमेंट से कैसे आपकी आर्थिक जिंदगी सुधर जाएगी.
  1. अब आपको किसी भी तरह का डेबिट कार्ड क्रेडिट कार्ड या अन्य तरह का पेमेंट कार्ड साथ नहीं ले जाना पड़ेगा.
  2. सभी तरह कार्ड तथा ATM पिन जोकि ग्राहकों के लिए याद करना मुश्किल होता था की जरूरत नहीं पड़ेगी.
  3. कई बार इंटरनेट कनेक्शन ना होने से कार्ड मशींस भुगतान के लिए उपलब्ध नहीं होती थी जिससे ग्राहकों को कई बार दिक्कतों का सामना करना पड़ता था लेकिन अब यह समस्या भी भीम पेमेंट से दूर हो गई लगती है.
  4. दुकानदारों को भी बैंकों से किसी भी तरह के पेमेंट गेटवे लेने की कोई जरूरत नहीं होगी जो कि एक असुविधाजनक लंबा रास्ता था और उसके लिए दुकानदारों को फीस भरनी पड़ती थी.
  5. यह सभी अन्य डिजिटल पेमेंट से ज्यादा सुरक्षित है क्योंकि इसमें बायोमेट्रिक सिस्टम इस्तेमाल में लाया जा रहा है.
  6. इसके अलावा आप को किसी भी तरह के इंटरनेट की जरूरत नहीं है तो इंटरनेट से हो रहे हो फ्रॉड से भी यह पूरी तरह सुरक्षित है.
  7. आपके फिंगर प्रिंट्स यूनिक है और इसलिए कोई अन्य व्यक्ति आपके अकाउंट से पेमेंट नहीं कर सकता.
  8. ऑनलाइन पेमेंट से कालाबाजारी बंद होगी और सरकार को ज्यादा से ज्यादा टैक्स मिल सकेगा सरदारपुर ज्यादा टैक्स मत का मतलब है सरकार की आय बढ़ना और सरकार की आय बढ़ने से जन कल्याणकारी योजनाओं में ज्यादा पैसा खर्च किया जा सकता है
जिस तरह से सरकार इसका प्रमोशन करने जा रही है, यह भविष्य में डिजिटल पेमेंट ऑनलाइन पेमेंट क्रेडिट कार्ड व डेबिट कार्ड के द्वारा हो रहे पेमेंट पर बहुत भारी पड़ने वाला है. क्योंकि यह अन्य तरह के पेमेंट से बहुत ही ज्यादा सटीक और कारगर है तथा इसका इस्तेमाल भी बहुत ही आसान है.
कैशलेस इकोनॉमी की तरफ सरकार का यह बहुत बड़ा कदम है और इसमें बहुत बड़ी संभावनाएं भी हैं.
 होने वाली असुविधा:
भीम ऐप पर पेमेंट की एक लिमिट है कि इसमें आप प्रतिदिन 20 हजार से ज्यादा का लेन-देन नहीं कर सकते किंतु हो सकता है कि सरकार आगे चलकर यह लिमिट बढ़ा दे जिसकी पूरी संभावना है.
भीम ऐप पर पेमेंट के लिए आपको सिर्फ अपना आधार नंबर दुकानदार को बताना होगा और दुकानदार को भीम ऐप डाउनलोड करना होगा. लेकिन यह वन टाइम प्रोसेस है अर्थात दुकानदार को भी यह एक ही बार डाउनलोड करना है और फिर इसके द्वारा वह भुगतान ले सकते हैं. ग्राहक के लिए यह फायदा है कि उसको किसी अन्य तरह की जानकारी उपलब्ध कराने की जरूरत नहीं है सिर्फ आधार नंबर दे देने मात्र से ही उसका सारा काम हो जाएगा.
हम जब भी क्रेडिट कार्ड और डेबिट कार्ड के द्वारा भुगतान करते हैं तो बहुत सारे अप्रत्यक्ष कर उसमें लगे होते हैं जिनकी हमें जानकारी भी नहीं होती. यह सारे खर्चे भी अब ग्राहकों के बचने वाले हैं क्योंकि आधार कार्ड से होने वाले पेमेंट पर किसी भी तरह का कोई करे चार्ज नहीं है.

भीम रेफरल बोनस स्कीम:
गवर्नमेंट एक रेफरल स्कीम लांच की है जिससे इसका इस्तेमाल ज्यादा से ज्यादा बढ़ाया जा सके.  इस स्कीम के द्वारा अगर आप कोई नया व्यक्ति जोड़ते हैं और वह व्यक्ति तीन लेन-देन पूरा कर लेता है तो आपको ₹25 का बोनस मिलेगा और प्रति व्यक्त रेफरल के लिए आपको ₹10 का बोनस मिलेगा मतलब अगर आप एक व्यक्ति जोड़ते हैं तो आपको ₹10 मिल जाएंगे.
इस स्कीम में दुकानदारों के लिए भी बोनस की व्यवस्था है दुकानदारों को ₹300 प्रतिमाह तक का बोनस मिल सकता है मतलब वह 6 महीने में 1800 रुपए तक कमा सकते हैं.

Sunday, April 16, 2017

प्रतिज्ञा का महत्व

प्रतिज्ञा का  जीवन में बहुत महत्व है, प्रतिज्ञा कर लेने से जीवन बदल जाता है. हम इतिहास पर नजर डालें  तो जितने भी बड़े महापुरुष हुए हैं उन्होंने जीवन में कभी न कभी  एक प्रतिज्ञा ली, एक कठोरतम जीवन जिया उस प्रतिज्ञा को पूरा करने के लिए,तभी वह सफल हुए. आज हम उनका नाम लेते हैं
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शिवाजी ने सिंह गढ़ का किला अपनी माता की प्रतिज्ञा को पूरा करने के लिए जीत लिया था कहते हैं सिंह गढ़ के किले को फतह करने के लिए शिवाजी के पास पर्याप्त सेना नहीं थी सिंह का दुर्ग इतना विशाल था और इतना सुरक्षित कि सामने से कोई भी शत्रु  उस पर विजय प्राप्त नहीं कर सकता था. किंतु उतना सुरक्षित किला भी  शिवाजी के दृढ निश्चय की वजह से  परास्त हुआ. कहते हैं शिवाजी ने अपनी सेना को  किले के पीछे से रसियों द्वारा चढ़कर आक्रमण करने की योजना बनाई. भीषणतम युद्ध हुआ यहां तक कि शिवाजी के सैनिक भयभीत होकर  भागने लगे थे. जितने भी सेनापति गए थे सारे मारे गए, सेनापतियों को मरा हुआ देखकर सारे सैनिक पीछे की ओर भागने की कोशिश करने लगे तभी पीछे  खड़े हुए एक सैनिक ने कहा "अब भागने का कोई रास्ता नहीं मैंने सारी रस्सीयां काट  दी है. अब  लड़ना ही हमारा एकमात्र धर्म है, पीछे जाओगे तो मारे जाओगे." ऐसा सुनकर सभी सैनिक पूरे मनोबल से शत्रु सेना पर टूट पड़े  और कुछ ही घंटों में  वह दुर्ग शिवाजी के कब्जे में आ गया. ऐसा किस तरह से संभव हुआ? क्योंकि उन सैनिकों ने दृढ निश्चय के साथ बिना डरे हुए शत्रु सेना पर आक्रमण किया. यह होता है दृढ़ निश्चय का परिणाम. कहते हैं उस किले को शिवाजी ने  1 घंटे के अंदर जीत लिया था.
प्रतिज्ञावान व्यक्ति के जीवन मैं कितनी बार दुख आते हैं, कितनी बार निराशा आती है, कितनी ही बार उनकी मित्र मंडली उन्हें इधर-उधर देखने के लिए विवश करती है. घर वाले नहीं दोस्त लोग भी उन्हें भटकाने की कोशिश करते हैं लेकिन एक बार प्रतिज्ञा लेने के बाद उन्हें यह मानकर चलना चाहिए कि उनकी सारी रस्सीयां, जीवन के सारे बंधन टूट चुके हैं और हम एक महान लक्ष्य के लिए आगे बढ़़ रहे हैं.
कभी भीष्म पितामह ने प्रतिज्ञा ली थी कि मैं आजीवन ब्रम्हचर्य का पालन करुंगा. अपनी प्रतिज्ञा का पालन करने के लिए उन्होंने राजपरिवार सब कुछ छोड़ दिया. एक राजा आजीवन ब्रम्हचर्य का पालन करते हुए एक परिवार की, एक कुटुंब की रक्षा करने के लिए आगे आता है, सिर्फ एक प्रण के कारण.
महाराणा प्रताप ने साधारण प्रतिज्ञा नहीं ली थी. जब तक स्वराज्य स्थापित नहीं कर लूंगा तब तक बर्तनों में भोजन नहीं करूंगा चारपाई पर नहीं सोऊंगा, धरती पर सोऊंगा. और कहते हैं कि अंत समय में उनके प्राण नहीं निकल रहे थे, मरते मरते भी वो कह रहे थे कि मेरा प्रण कौन पूरा कर पायेगा? कहीं तुम लोग समझौता तो नहीं कर लोगे? लेकिन जब सारे सेनापतियों ने तलवार निकालकर यह प्रतिज्ञा ली किन नहीं हम  लोग प्रतिज्ञा करते हैं कि हम आपका प्रण पूरा करेंगे. तब वह शांति से मर सकते थे.
इसी तरह डॉक्टर हेडगेवार, संघ के संस्थापक, के बारे में भी कहते हैं कि जब उनका अंतिम संस्कार हो गया तथा श्री गुरुजी ने उन का उत्तराधिकारी होने के नाते उन का पिंड दान करने के लिए अपने हाथ से आटे का पिंड बनाकर कौवे को खिलाने की चेष्टा तो उस कौवे ने उनका पिंड तक नहीं खाया लोग कहने लगे कि डॉक्टर हेडगेवार जैसा अखंड ब्रह्मचारी देवता तुल्य पुरुष जिन्होंने अपने जीवन में इतना क्या आप किया फिर भी उनका पिंड मरणोपरांत पक्षी भी नहीं खा रहे हैं, यह कैसे हो सकता है. लेकिन तभी परम पूजनीय गुरूजी को यह समझ में आया उन्होंने अपने हाथ में पिंड को लेकर यह प्रतिज्ञा लिंग की "हे डॉक्टर हेडगेवार आपने जिस कार्य के लिए अपना जीवन खपा दिया उस कार्य को  पूरा करके रहूंगा और इसके अलावा दूसरा कोई कार्य नहीं करूंगा, नहीं करूंगा." ऐसा कहकर जैसे ही उन्होंने पिंड को नीचे रखा कौवा पिंड को लेकर चला गया.
हमारी प्रतिज्ञा से हम सब की शक्तियां और वह शक्तियां भी जो अदृश्य हैं सब अभिभूत होती है. हम किसी न किसी को वचन देते हैं. हमारी प्रतिज्ञा को देवता भी सुनते हैं. हम जब प्रतिज्ञा से हटते हैं देवता भी उसे क्षमा नहीं करते.

क्या 2019 में मोदी के खिलाफ एकजुट होगा विपक्ष?



भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक भुवनेश्वर, उड़ीसा में शुरू हो चुकी है. इससे ठीक पहले अखिलेश यादव का एक बयान मीडिया में चर्चा का प्रमुख कारण बन गया है अखिलेश यादव ने कहा है कि वह मोदी को रोकने के लिए किसी भी तरह के गठबंधन के लिए तैयार है. आपको बता दें कि कुछ दिनों पहले ही मायावती ने भी गठबंधन के लिए तैयार रहने की बात कही थी तो क्या मुलायम और मायावती एक साथ आ रहे हैं? और अन्य प्रदेशों के भी छोटे बड़े दल क्या 2019 में एकजुट होकर मोदी की विजय रथ को रोक पाएंगे.

 क्या मोदी के 2019 के प्लान से विपक्ष बुरी तरह डर गया है? कि जो लोग एक दूसरे के धुर विरोधी थे वह एक साथ आने को तैयार हो गए हैं. अभी हम ने हाल ही में उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में देखा कि कैसे कांग्रेस और समाजवादी पार्टी एक साथ मोदी के खिलाफ मैदान में आ गए थे लेकिन जनता को यह साथ पसंद नहीं आया था.
कई बार ऐसा भी होता है कि साथ आए हुए दलों के वोट बैंक एकजुट नहीं हो पाते और उसका लाभ विरोधी पार्टी को मिल जाता है और कई बार यह गठबंधन उन्हीं के लिए विस्फोटक साबित हो जाता है. जैसा की हमने उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में देखा कि कैसे विरोधियों के चीथड़े उड़ा दिए जनता ने.
मायावती जी का कहना है कि वह लोकतंत्र को बचाने के लिए किसी भी तरह के गठबंधन के लिए तैयार है लेकिन क्या यह लोकतंत्र को बचाने की मुहिम है या अपनी अपना अस्तित्व. जैसा कि हम जानते हैं कि मायावती जी की पार्टी (बसपा) का अस्तित्व उत्तरप्रदेश में इतना भी नहीं बचा कि वह अपने बूते राज्यसभा का टिकट पा सकें और समाजवादी पार्टी के अंदर मचे घमासान ने उन्हें बहुत कमजोर कर दिया है. तो यह मानने में कोई बुराई नहीं कि यह अपना अस्तित्व बचाने की लड़ाई ज्यादा है, और जैसा कि हम जानते हैं कि राजनीति में कोई नैतिकता नहीं होती और पार्टियां सत्ता के लिए विरोधियों को भी गले लगा ही लेते हैं

इसमें कोई दो मत नहीं कि देश में कभी भी किसी भी पार्टी का एकछत्र राज नहीं होना चाहिए. इससे लोकतंत्र में संतुलन बना रहता है. एक शक्तिशाली विपक्ष का होना लोकतंत्र में अनिवार्य है. अतः अगर यह सारी पार्टियां विपक्ष को मजबूत बनाने के लिए एक साथ आ रही हैं तो इसमें कोई हर्ज नहीं है. किंतु अपने सिद्धांतों की बलि देकर सिर्फ अपना अस्तित्व बचाने के लिए अगर कुछ लोग साथ आते हैं तो इसे स्वार्थ वादी राजनीति ज्यादा कहेंगे.


विपक्षी पार्टियों के समक्ष चुनौतियां
सबसे बड़ी चुनौती विपक्ष के सामने यह है कि इस गठबंधन का नेता कौन होगा. अगर एक क्षण के लिए हम मान भी लें कि देश के सारे विपक्षी दल गैर भाजपा गठबंधन बनाने में सफल भी हो जाते हैं. तो क्या वह अपना एक नेता चुन पाएंगे? क्या मायावती अखिलेश को या अखिलेश राहुल गांधी को, ममता बनर्जी केजरीवाल को या अन्य किसी को प्रधानमंत्री का चेहरा बनाकर मैदान में उतरेंगे? क्योंकि जनता के सामने एकजुटता दिखाने के लिए एक प्रधानमंत्री का उम्मीदवार भी होना चाहिए. या सारी पार्टियां बिना किसी चेहरे के ही 2019 का चुनाव लड़ेंगी.
विपक्ष के सामने एक चुनौती यह भी है की पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी और कम्युनिस्ट पार्टी एक साथ नहीं आ सकते तमिलनाडु में डीएमके और एआईडीएमके एक साथ नहीं आ सकते. यही हाल कमोबेश कई और राज्यों में है.
विपक्ष के एक होने का आधार
अगर हम विपक्ष के एक होने की वजह  तलाशना चाहे तो हमें एक तरफ अपने अस्तित्व को बचाए रखने की कोशिश नजर आती है और दूसरी तरफ बिहार मॉडल नजर आता है. जैसा कि हमें ज्ञात है कि 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार, लालू यादव और कांग्रेस पार्टी एक साथ आ गए थे और उन्होंने भारतीय जनता पार्टी के विजय रथ को रोक दिया था. जो राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन 40 में से 31 सीटें लोकसभा चुनाव में लाने में सफल रहा था वह विधानसभा चुनाव में बुरी तरह से परास्त हुआ. यही वह उम्मीद है जिसकी वजह से सारी पार्टियां मोदी के खिलाफ एकजुट होने का प्रयास कर रही हैं. ज्ञात हो कि उत्तर प्रदेश चुनाव के पहले भी नीतीश कुमार ने कांग्रेस, बसपा और सपा से एकजुट होने का आह्वान किया था.

Saturday, April 15, 2017

तीन तलाक, हलाला, बहुविवाह क्या खत्म?

भारत का सर्वोच्च न्यायालय तीन तलाक, बहुविवाह और हलाला जैसे कई मुद्दों पर सुनवाई करने वाला है. यह तीन कुरीतियां जोकि मुस्लिम समाज में व्याप्त है और आजकल चर्चा का का कारण बनी हुई है, सुप्रीम कोर्ट इन पर सुनवाई करने वाला है. जहां मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड इन को समाप्त करने के सख्त खिलाफ है
और कहता है कि मुस्लिम समाज ऐसा नहीं चाहता और यह शरीयत और कुरान के खिलाफ है. वही इस के विरोध में बोलने वालों की संख्या भी कम नहीं है. इसे मुस्लिम महिलाओं के मानवाधिकार का हनन भी कहा जा रहा है और भारतीय संविधान में दिए मूल अधिकारों की भावना के खिलाफ भी.
यक्ष प्रश्न यह भी है की 21 वीं शताब्दी में जहां दुनिया आधुनिकीकरण के दौर में आगे बढ़ रही है, वहां इन हजारों साल पुरानी प्रथाओं की जरूरत क्या है? इतिहास गवाह है कि समय के साथ बहुत सारी प्रथाएं खत्म हो जाती हैं और नई प्रथाएं आती जाती हैं. यही प्रकृति का नियम है फिर मुस्लिम संगठन इस प्रथा को जिंदा रखना क्यों चाहते हैं और इसे मुस्लिम धर्म से क्यों जोड़ रहे हैं?
आइए जानते हैं कि इनके मायने क्या है?
बहु विवाह के बारे में हम जानते हैं कि मुस्लिम समाज में पुरुषों को छूट दी गई है कि वह कई सारी शादियां कर सकते हैं. लेकिन यह छूट सिर्फ पुरुषों के लिए है महिलाओं के लिए नहीं. अगर एक मुस्लिम पुरुष दो या तीन शादियां कर लेता है तो क्या वह अपनी सभी बीवियों के प्रति ईमानदार हो सकता है? यह सोचने की बात है और अगर पुरुष ऐसा कर सकते हैं तो महिलाएं क्यों नहीं?
तीन तलाक यह एक ऐसा मसला है जिसमें बहुत सारे लोगों को अभी भी स्पष्टता नहीं है. मुस्लिम समाज में बहुत पहले से ही तीन तलाक होता रहा है. लेकिन इसका जो स्वरूप अभी प्रस्तुत किया जा रहा है वैसा स्वरूप इस्लाम में नहीं है. अगर कोई पति अपनी पत्नी को तलाक देना चाहता है तो उसे यह तीन बार में और 3 महीनों में करना होगा. मतलब हर महीने एक तलाक. हर तलाक के बाद परिवार वाले मध्यस्तता करने की कोशिश करते हैं और फिर भी अगर बात नहीं बनती तो तलाक मान लिया जाता है. लेकिन मुस्लिम युवाओं ने कई इस तरह की विधियां अपना ली हैं जिसमें वह एक ही बार में तीन तलाक बोलकर अपने पत्नी से मुक्ति पा लेते हैं. कईयों ने तो WhatsApp और ईमेल से तलाक दे दिया और मजे की बात है मुस्लिम धर्म गुरुओं ने इसे मान्यता भी दे दी दी. यह सारी लड़ाई इसी प्रथा के खिलाफ है जो इस समय समाज में व्याप्त है.
आइए अब बात कर लेते हैं हलाला पर
हलाला को समझने के लिए मैं आपको एक छोटा सा उदाहरण देता हूं. समझिए दो पति-पत्नियों के बीच आपस में थोड़ी अनबन हो जाती है जो कि आगे चलकर एक झगड़े का रूप ले लेती है और गुस्से में आकर पति अपनी पत्नी को तीन बार तलाक बोल देता है. लेकिन जब उसका गुस्सा शांत होता है और गंभीरता से इस बारे में सोचता है तो उसके होश उड़ जाते हैं और वह समझ नहीं पाता कि वह क्या करें वह सोचता है उसकी पत्नी तो बहुत अच्छी है, समझदार है लेकिन अब तलाक तो हो चुका है अब वह क्या करें, किसके पास जाए? उसके पास दो रास्ते बचते हैं या तो वह झूठ बोले और यह सोच ले उसने तीन तलाक बोला ही या फिर किसी मौलवी के पास जाकर अपनी बात बताएं. अगर वह किसी मौलवी के पास जाता है और उसे अपनी बात बताता है तो मौलवी साहब उसे कहते हैं की तलाक तो अब हो गया है क्योंकि तूने तीन बार तलाक बोल दिया है लेकिन अगर तू अपनी बीवी को वापस पाना चाहता है तो तुझे हलाला करवाना पड़ेगा. यह हलाला क्या है? अपनी पत्नी की शादी किसी दूसरे व्यक्ति के साथ करवा दो और एक दिन या कुछ दिनों के बाद वह पुरुष तुम्हारी पत्नी को तलाक दे दे . तो तुम अपनी पत्नी से दोबारा निकाह करके उसे प्राप्त कर सकते हो अब आप ही सोचिए क्या यह उस महिला के खिलाफ अत्याचार नहीं है? गुस्सा किस को आया? तलाक किसने दिया? और उसकी सजा कौन भुगत रहा है?
गौरतलब है कि कई मुस्लिम देशों में इन प्रथाओं पर रोक लगाई जा चुकी है क्या वहां के मुसलमान मुसलमान नहीं है क्या उस उनका इस्लाम इस फैसले के बाद खतरे में आ गया है. तो फिर मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड हिंदुस्तान में इसकी पैरवी कैसे कर सकता है? जहां पर सभी नागरिकों को समान अधिकार है.
आखिर धर्म के नाम पर हम मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों का हनन कब तक होने देंगे? अब समय आ गया है किस सारे मुस्लिम समाज के लोग इस पर जागे और अपने महिलाओं को उचित स्थान दें.

कश्मीर समस्या का समाधान ? Stone pelter kashmiries

पिछले कई दिनों में हमने देखा है कि कश्मीर के हालात पर कई सारे वीडियोस सोशल मीडिया पर सुर्खियां बटोर रहे हैं. इन्होंने राजनीतिक माहौल को काफी गरमा दिया है. एक वीडियो में एक सुरक्षा में तैनात जवान को पत्थरों से मारने की बात जाहिर हुई है जबकि एक वीडियो में सुरक्षाकर्मी अपने वाहन के अग्रभाग  में एक उपद्रवी को बांध कर ले जा रहे हैं जिससे कि वह पत्थरबाजों से बच सकें.



इन घटनाओं ने कई सारे राजनीतिक दलों को आमने सामने ला खड़ा किया है. जहां पर उमर अब्दुल्ला की पार्टी पत्थरबाजों के साथ दिखाई देती है और उनके साथ हमदर्दी दिखा रही है वही भारतीय जनता पार्टी जवानों के साथ डटकर खड़ी है.
लेकिन इस मसले के बीच यह सवाल बड़ा है कि क्या पत्थरबाजों को रोकने की जिम्मेदारी सिर्फ सेना की है? भारत के नागरिकों की, यहां के राजनीतिक दलों की इसके प्रति कोई जिम्मेदारी नहीं?
आखिर कौन है यह पत्थर बाज और इनकी आय का स्रोत क्या है? कौन इनकी मदद कर रहा है और कश्मीर का माहौल कौन बिगाड़ रहा है ? यह कुछ प्रश्न सभी के मस्तिष्क में अपना स्थान बनाए हुए हैं. सरकार का कहना है कि कुछ मुट्ठी भर लोग जिन्हें पाकिस्तान की आई एस आई प्रोत्साहन दे रही है, ऐसा कर रहे हैं जबकि पाकिस्तान इसे कश्मीर की आजादी की लड़ाई कहता है.
राजनीतिक दलों ने इसे एक चुनावी मुद्दा बना लिया  है. आईए थोड़ा इस पर नजर डालते हैं कि कौन सा राजनीतिक दल क्या कह रहा है?
कांग्रेस पार्टी का कहना है कि यह प्रदर्शन सेना के खिलाफ नहीं बल्कि केंद्र सरकार और राज्य सरकार जिसमें अब कुछ ज्यादा फर्क नहीं है, के खिलाफ है क्योंकि वह, जो कुछ लोग असंतुष्ट हैं कश्मीर घाटी में, उनसे बात नहीं करना चाह रहे और वही सेना को निर्देश दे रहे हैं यह सब करने के लिए. क्योंकि सेना सिर्फ निर्देशों का पालन करती है वह अपनी मर्जी से कुछ नहीं करती.
फारुख अब्दुल्ला का कहना है की इस पूरी समस्या का हल बातचीत से ही निकल सकता है गोली चलाने से इस बात का हल नहीं निकलेगा मैं पिछली सरकार में भी यह बात कहता रहा हूं आज भी कहूंगा कि आइए बैठकर बात करते हैं.
लेकिन यह बात भी गौर करने वाली है कि यह पत्थर बाज यह आतंकवादी क्या हमारे बात करने से सुधर जाएंगे? हमारी बात मान जाएंगे? अगर ऐसा होना होता तो पिछले 40 सालों से हम क्या कर रहे हैं? इतने साल हमने बात ही तो की है इसका क्या परिणाम निकला है. 1990 में करीब 3.5 लाख कश्मीरी हिंदुओं को घाटी से भगा दिया गया. यह सभी राजनीतिक दल उस वक्त भी मौन थे और आज भी इस मुद्दे पर कुछ नहीं बोलते. धीरे-धीरे कश्मीर का अल्पसंख्यक समुदाय पलायन करता जा रहा है. पत्थरबाजी की घटनाएं बढ़ रही हैं और राजनीतिक पार्टियां बल प्रयोग करने को मना कर रही है क्या यह उचित है?
 ध्यान रहे कि अभी कुछ आतंकवादियों के एनकाउंटर के समय भी यह पत्थरबाज सेना पर पत्थरबाजी करते पाए गए थे. जब सेना आतंकवादियों का सफाया कर रही हो उस समय उन्हें घेरकर उन पर पत्थर बरसाना क्या प्रदर्शित करता है? क्या यह आतंकवादियों का खुला समर्थन नहीं है? क्या इस पर हमें बैठ कर बात करने की जरूरत है? और अगर हां तो माफ कीजिए मेरी नजर में यह समर्पण है आतंकवादियों के समक्ष, उग्रवादियों के समक्ष, इन पत्थरबाजों के समक्ष.
अब समय आ गया है कि सभी राजनीतिक दल एकजुटता दिखाएं धारा 370 को समाप्त करें. जिससे कि भारत के सारे कानून जम्मू कश्मीर पर लागू हो सके. सेना को बल प्रयोग की खुली छूट दी जाए जिससे इन पत्थरबाजों और आतंकवादियों का समूल नाश किया जा सके. अब धैर्य का नहीं शौर्य का वक्त है. अब आराधना का वक्त नहीं, साधना का वक्त नहीं, सामना करो, बहादुरी से दुश्मनों का सामना करो. इन्ही पंक्तियों के साथ अपनी बात को समाप्त करता हूं.

Friday, April 14, 2017

रिलायंस जिओ का सफर| Jio reached 100 million

रिलायंस जिओ के करीब 11 करोड़ हो चुके हैं और यह अपने आप में एक बहुत बड़ा कस्टमर बेस है क्या आप जानते हैं कि जियो के आने के बाद भारत में किस तरह से डिजिटल क्रांति हुई है आइए डालते हैं उस पर एक नजर.


हमें याद होगा की 2015 में और 2016 में किस तरह से 1GB 3G डाटा करीब ढाई सौ रुपए का मिलता था और हम उस 1जीबी डेटा को पूरे महीने चलाने की कोशिश करते थे और अब 1जीबी 4जी डाटा लगभग सभी कंपनियां 50 से 60 में दे रही हैं दे रही है. जिओ के फ्री ऑफर ने बड़े-बड़े टेलीकॉम सेक्टर के महारथियों को घुटनों पर ला दिया सभी अपने कस्टमर्स को बचाने के लिए सस्ते प्लान देने लगे लेकिन फिर भी अभी जिओ इन सब से थोड़ा आगे ही जा रहा है.
आइए जानते हैं कि जियो अपने अपने ऑफर में क्या क्या दे रहा है.
जियो ने दी है तुरंत सिम एक्टिव करने की सुविधा जैसा कि हम जानते हैं jio आधार कार्ड से लिंक करके तुरंत ही सिम और आधे घंटे के अंदर सिम एक्टिवेट करने की सुविधा प्रदान की है हालांकि कुछ लोगों से नाराज हो सकते हैं कि उन्हें मनचाहा नंबर पसंद करने की छूट जिसमें नहीं दी गई लेकिन फिर भी अगर आपका सिर्फ आधे घंटे में एक्टिव हो जाता है और सबसे कम डॉक्यूमेंटेशन में तो यह अपने आप में ही बहुत बड़ी बात है. जियो इस सर्विस में लंबी लंबी लाइनों को खत्म किया है
उसके साथ ही जियो आपको देता है हर दिन 1 GB डाटा फ्री. जियो के सारे प्लान के बारे में आप लोग जानते ही हैं लेकिन जिओ के ऐप्स भी धूम मचा रहे हैं जैसे की खास तौर पर जिओ टीवी आपको देता है करीब-करीब 200 चैनल जिससे आप उसके डाटा का भरपूर इस्तेमाल भी कर पाते हैं. कहीं भी आप TV चला सकते हैं अब आपको अलग अलग चैनलों के लिए अपने मोबाइल पर अलग-अलग ऐप्स डाउनलोड करने की जरूरत नहीं.
जिओ सिनेमा जिसमें आप बहुत सारी फिल्में देख सकते हैं जियो म्यूजिक जिसमें नए रिलीज हुए गाने आप सुन सकते हैं जियो चैट, जिओ एक्सप्रेस न्यूज़, जियो मनी, जिओ सिक्योरिटी और ना जाने क्या-क्या. इस तरह के ऑफर ने जियो को बाकी कंपनी में से आगे ला खड़ा किया. आइए जानते हैं.
आइए नजर डालते हैं जियो के इतिहास पर सबसे पहले जियो ने लांच किया LYF के मोबाइल के साथ अपना सिम जोकि आपको असीमित डाटा के साथ कॉलिंग फ्री देता था लेकिन तब तक यह ऑफर कमर्शियल नहीं था.  इस समय जियो को  कुछ दिक्कतों का सामना करना पड़ा  जैसे कि कॉल कनेक्टिविटी को लेकर और उसे काफी आलोचनाओं का सामना करना पड़ा. Airtel Vodafone Idea जैसी कंपनियां जिओ की कॉल को अपने नेटवर्क से नहीं जोड़ रही थी जिससे के कारण जियो के कस्टमर्स को बहुत दिक्कत हो रही थी और लोग जिओ के सिम सिर्फ और सिर्फ इंटरनेट के लिए यूज कर रहे थे. लेकिन जब ट्राई ने एयरटेल और वोडाफोन जैसी कंपनियों पर जुर्माना लगाया तब से जियो की सर्विस धीरे-धीरे ठीक होने लगी jio ने व्यवसायिक रूप से अपने आप को 5 सितंबर 2016 को  मैदान में उतारा और इस काम बहुत ही सकारात्मक असर पड़ा और मात्र 84 दिनों में 10 करोड़ से ज्यादा ही लोग जिओ से जुड़े. इस ऑफर में उन्होंने यूजर्स को पढ़े 4 GB डाटा फ्री डाटा तथा पूरे भारत में कॉलिंग फ्री मिलती थी.
दिसंबर 2016 में जियो ने लांच किया हैप्पी न्यू ईयर ऑफर जिसमें उन्होंने बाकि सुविधाएं तो वही रखी बस डाटा पैक 4GB से घटाकर 1GB कर दिया इस तरह से 6 महीनों तक रिलायंस जिओ ने आपको फ्री सर्विस दी इस फैसले ने दे
ने टेलीकॉम सेक्टर में त्राहि-त्राहि मचा दी और सभी टेलीकॉम कंपनियों को अपने दाम घटाने पर मजबूर कर दिया क्योंकि उनका ग्राहक जियो की तरफ भाग रहा था इससे अंततः हमारा ही फायदा हुआ और जियो की वजह से कम से कम हजार से ₹2000 प्रति महीने का मोबाइल खर्चा लोगों का कम हो गया यह ऑफर मार्च में समाप्त हो गया इस ऑफर की समाप्त होने से पहले ही jio ने प्राइम मेंबरशिप शुरु की जिसके तहत आप 99 रुपए का रिचार्ज करा कर पूरे एक साल तक अपने हैप्पी न्यू ईयर प्लान को चालू रख सकते थे बस आपको खर्च करने होते 303 रुपए प्रतिमाह 7.5 करोड़
 लोगों ने जियो प्राइम मेंबरशिप ले भी ली थी उपभोक्ताओं के धीमी प्रतिक्रिया को देखते हुए jio ने समर सरप्राइज़ ऑफर लॉन्च किया  जिसके तहत अगर आप 31 मार्च से पहले प्राइम मेंबरशिप के साथ 303 या ज्यादा का रिचार्ज करा लेते हैं तो आपको पूरे 4 महीने तक फ्री सर्विस मिलती रहेगी इस प्लान में सारी टेलीकॉम कंपनियों के होश उड़ा दिए.  ट्राई ने हस्तक्षेप किया और जियो से अपना यह प्लान वापस लेने को कहा लेकिन उन ग्राहकों का इसमें फायदा हो गया जिन्होंने ट्राई के हस्तक्षेप से पहले यह प्लान ले लिया था. अभी हाल में जियो ने फिर वही प्लान ₹309 में लॉन्च किया है जिसको दे दनादन ऑफर नाम दिया है.
जो भी हो jio ने  मार्केट में उतर कर सारी टेलीकॉम कंपनियों के रेट्स को तो चेंज कर ही दिया है और लोगों की इंटरनेट की भूख भी बढ़ा दी है जो लोग 1जीबी डाटा महीने में चलाते थे उनके लिए आज एक दिन में 1 GB डाटा कम पड़ रहा है. धन्यवाद jio डिजिटल क्रांति के लिए.

Saturday, April 8, 2017

परमाणु नीति में बदलाव| Nuclear War| India vs Pakistan

पाकिस्तान की तरफ से 'लगातार' आतंकी खतरे को काउंटर करने के लिए भारत परमाणु हथियारों का इस्तेमाल पहले न करने की अपनी नीति में बदलाव कर सकता है. शीर्ष परमाणु विशेषज्ञों ने यह राय जाहिर की है.
'टाइम्स ऑफ इंडिया' की रिपोर्ट के मुताबिक परमाणु हथियारों के विशेषज्ञों की राय है कि, 'भारत परमाणु हथियार का इस्तेमाल पहले न करने की अपनी नीति में बदलाव कर सकता है और यह नीति अपने पड़ोसी देश के खिलाफ पहले परमाणु हथियार के इस्तेमाल की नीति हो सकती है.' 
रिपोर्ट के मुताबिक विशेषज्ञों ने भारतीय प्रतिष्ठानों से मिले 'गूढ़ बयानों' के आधार पर यह अनुमान जताया है.
गौरतलब है कि कुछ समय पहले रक्षा मंत्री मंत्री मनोहर पर्रिकर ने परमाणु हथियारों के पहले इस्तेमाल न करने की नीति पर अपनी बात रखते हुए कहा था कि भारत को अपने परमाणु सिद्धांत के बारे में दोबारा से विचार करना चाहिए. हालांकि, पर्रिकर ने बाद में सफाई दी कि यह उनकी निजी राय थी.
पर्रिकर ने भी किया था इशारा
पर्रिकर के बाद पूर्व विदेश सचिव शिवशंकर मेनन ने भी माना कि किसी परमाणु ताकत संपन्न देश के खिलाफ भारत न्यूक्लियर हथियार कब इस्तेमाल करेगा, इससे जुड़ी स्थितियां साफ नहीं हैं. इन विचारों के बाद परमाणु विशेषज्ञ यह सोचने के लिए मजबूर हो गए कि क्या भारत परमाणु हथियारों के इस्तेमाल के सिद्धांतों को नई दिशा दे रहा है.
इन अटकलों को उस वक्त और ज्यादा बल मिला, जब विश्व प्रसिद्ध मेसाचुसेट्स इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नॉलजी ( एमआईटी) के विद्वान विपिन नारंग ने वॉशिंगटन में आयोजित इंटरनैशनल न्यूक्लियर पॉलिसी कॉन्फ्रेंस में अपनी राय रखी. नारंग के मुताबिक, भारत परमाणु हथियारों के इस्तेमाल से जुड़ी 'नो फर्स्ट यूज' पॉलिसी को छोड़ सकता है. अगर उसे लगता है कि पाकिस्तान उसके खिलाफ किसी भी तरह का न्यूक्लियर हमला करने की योजना बना रहा है तो वह पहले ही परमाणु जंग छेड़ सकता है.

योगी आदित्यनाथ| Hindutva Icon| saffron Leader

भारत के सबसे बड़े सूबे के मुख्यमंत्री के रूप में योगी आदित्यनाथ ने शपथ ली है और वह आजकल सुर्खियों में हैं. आइए जानते हैं योगी आदित्यनाथ के बारे में.
योगी आदित्यनाथ का जन्म उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल जिले जो कि उस समय उत्तर प्रदेश का ही भाग था, में 5 जून 1972 को एक राजपूत परिवार में हुआ था. उनके पिता आनंद सिंह बिष्ट एक फारेस्ट रेंजर थे. आदित्यनाथ का बचपन का नाम अजय सिंह बिष्ट है
. आदित्यनाथ ने गणित में स्नातक की उपाधि हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल यूनिवर्सिटी से प्राप्त की तथा 21 साल की छोटी सी उम्र में अपना घर बार छोड़ कर गोरखनाथ मठ, गोरखपुर उत्तर प्रदेश में जाकर संयास ले लिया. वहां पर वह महंत  अवैद्यनाथ के सानिध्य में रहे. महंत अवैद्यनाथ का संबंध नाथ संप्रदाय से है और वह आजादी के बाद से ही हिंदू महासभा के सदस्य रहे हैं. महंत अवैद्यनाथ ने ही योगी आदित्यनाथ को अपना उत्तराधिकारी बनाया.
आदित्यनाथ का संसद का सफर
जैसा की हमने आपको बताया कि महंत अवैद्यनाथ हिंदू महासभा से संबंध रखते थे और उसी के टिकट पर आजादी के बाद से लगातार सांसद बनकर लोकसभा आते रहे. उन्होंने भारतीय जनता पार्टी की सदस्यता राम मंदिर आंदोलन के दौरान प्राप्त की तथा उसके टिकट पर भी लोकसभा पहुंचे 1998 में उन्होंने अपना उत्तराधिकारी योगी आदित्यनाथ को चुना तब से आज तक लगातार 5 बार योगी आदित्यनाथ गोरखपुर से लोकसभा के सांसद हैं( 1998 1999 2004 2009 और 2014 के इलेक्शन में)
 हिंदू युवा वाहिनी का निर्माण
पहली बार लोकसभा के लिए चुने जाने के बाद योगी आदित्यनाथ ने एक युवा संगठन हिंदू युवा वाहिनी का निर्माण किया जो पूर्वी उत्तर प्रदेश में सक्रिय है. यह एक हिंदुत्ववादी संगठन है.
योगी आदित्यनाथ अपने बेहिचक लिए गए मजबूत फैसलों के लिए जाने जाते हैं और इसी के कारण वह कई सारे विवादों में भी रहे. जैसे कि 2009 में महिला आरक्षण का विरोध करना. 2007 में बीजेपी के खिलाफ ही हिंदू महासभा से अपने उम्मीदवार उतार देना, जिसने बीजेपी से उनके रिश्ते में थोड़ी बहुत खटास पैदा की. लेकिन इस दौरान भी वे RSS के चहते बने रहे. 2005 में आदित्यनाथ ने शुद्धिकरण की मुहिम चलाई जिसमें उन्होंने बहुत सारे ईसाइयों को हिंदू बना दिया. एक अनुमान के मुताबिक 1800 इसाई हिंदू बनाए गए.
उन्होंने गोरखपुर में कई सारे स्थानों के नाम, जो कि मुस्लिम नाम थे, को बदल दिया.
उनके कई सारे जनता में दिए गए वक्तव्य हैं जिससे मुस्लिम समाज के खिलाफ हिंदुओं को संगठित रहने का संदेश दिया गया. इस तरह से आदित्यनाथ की छवि एक कट्टर हिंदुत्ववादी नेता के रूप में उभरी.
2014 के लोकसभा इलेक्शन में पूर्वी उत्तर प्रदेश में उन्होंने बीजेपी की कमान संभाली और भारतीय जनतीा पार्ट की जीत में एक अहम भूमिका अदा की. उनके इसी प्रदर्शन को देखते हुए 2017 के उत्तर प्रदेश के इलेक्शन में भी उन्हें बड़ी भूमिका दी गई और उन्होंने पूरे उत्तर प्रदेश में बड़ी संख्या में रैलियां की भारतीय जनता पार्टी की विधानसभा चुनाव में हुई जीत में उनका बहुत बड़ा योगदान है. गोरखपुर से लगातार उनको मुख्यमंत्री बनाने की मुहिम चलाई गई किंतु उनकी कट्टरवादी छवि को देखते हुए किसी को भी यह एहसास नहीं था कि वह मुख्यमंत्री बन जाएंगे किंतु प्रधानमंत्री मोदी ने उन्हें उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बना कर सबको चौंका दिया.
आपको बता दें कि लगातार पांच बार लोकसभा सांसद बनने के बाद भी उन्हें मोदी मंत्रिमंडल में जगह नहीं मिली इसका अर्थ यह भी लगाया जा सकता है कि उनकी उत्तर प्रदेश में भूमिका पहले से ही निश्चित कर दी गई थी.
मुख्यमंत्री बनने के बाद ताबड़तोड़ लिए गए फैसलों ने उनकी छवि को और बढ़ा दिया है बहुत सारे लोग उनकी तुलना प्रधानमंत्री मोदी से करने लगे हैं. चाहे वह एंटी रोमियो स्क्वायड का गठन हो, किसानों का ऋण माफ करने की बात हो, शिक्षा प्रणाली में सुधार के लिए लिए गए फैसले हो या फिर अभी-अभी ली गई खाद्य सुरक्षा योजना का फैसला हो (जोकि तमिलनाडु की तर्ज पर है). इन सभी फैसलों ने योगी की छवि को बड़ा किया है और विरोधियों को काफी हद तक शांत किया है.

अंतरिक्ष में प्रदूषण| Pollution| Space Danger

अंतरिक्ष में सभी वस्तुयें चाहे वो छोटीे हो या बड़ी एक ही गति से चलती हैं और यह गति 17500 मील प्रति घंटे की होती है. आप अनुमान लगा सकते हैं कि अगर एक छोटा सा कण भी इस गति से किसी सेटेलाइट से टकरा जाए तो वह कितना खतरनाक हो सकता है.
हम आए दिन यह खबर सुनते रहते हैं कि  किसी अन्तरिक्ष एजेंसी ने सेटेलाइट या उपग्रह लॉन्च किया है. अभी इसरो ने एक साथ 104 उपग्रह अंतरिक्ष में उतारे थे. इस पर पूरे विश्व में भारत वासियों ने गर्व महसूस किया था. लेकिन क्या हम जानते हैं कि इन अंतरिक्ष में बिखरे हुए उपग्रहों पर और धरती पर एक खतरा मंडरा रहा है? और यह खतरा है अंतरिक्ष में फैले कचरे का.
हर एक उपग्रह रॉकेट मंगलयान अपने पीछे छोटे बड़े कई तरह के कचरे अंतरिक्ष में छोड़ता है. यह सिलसिला 1950 से लगातार चला आ रहा है और आज हालात यह हैं कि यह छोटेे बड़े कचरे कचरा बड़े-बड़े स्पेस स्टेशन, सैटेलाइट्स के लिए खतरा बन गए हैं. इस अंतरिक्ष कचरे को ऑर्बिटल डेब्रिस कहते हैं.
खतरा कैसे?
अंतरिक्ष में सभी वस्तुयें चाहे वो छोटीे हो या बड़ी एक ही गति से चलती हैं और यह गति 17500 मील प्रति घंटे की होती है. आप अनुमान लगा सकते हैं कि अगर एक छोटा सा कण भी इस गति से किसी सेटेलाइट से टकरा जाए तो वह कितना खतरनाक हो सकता है अगर  यह सभी का एक ही दिशा में चल रहे हो तो यह खतरनाक नहीं होंगे लेकिन ऐसा नहीं होता है इसको हम इस तरह से समझ सकते हैं कि जैसे एक हाय हाईवे पर दो कार्य अगर 100 किलोमीटर प्रति घंटा से एक ही दिशा में चलें तो उनकी गति का पता नहीं चलता परंतु अगर वह एक दूसरे की तरफ खाकर आ रही हां तो वह दुगुनी रफ्तार से टकरा जाएंगी यह एक तरह का अंतरिक्ष प्रदूषण है जोकि बढ़ता ही जा रहा है
अंतरिक्ष में प्रदूषण का कारण
  1. एक अनुमान के मुताबिक 7000 से ज्यादा उपग्रह अंतरिक्ष में छोड़े गए हैं जिनमें से करीब 1500 ही कार्यरत है यह निष्क्रिय पड़े उपग्रह भी अंतरिक्ष को प्रदूषित कर रहे है और यह संख्या अगले दशक तक 18000 तक पहुंच जाएगी जो कि इस समस्या को और बढ़ा देगी इस तरह का प्रदूषण उपग्रहों स्पेस शटल और स्पेस स्टेशन के लिए बहुत बड़ा खतरा है
  2. चीन ने 2007 में अपने मिलिट्री ऑपरेशन के लिए एक अंतरिक्ष यान को बैलेस्टिक मिसाइल से ध्वस्त कर दिया था जिससे 3000 से ज्यादा छोटे-बड़े मलबे अंतरिक्ष में फैल गये
  3. इसी प्रकार से 2009 में रूस का एक उपग्रह अमेरिका के व्यवसायिक उपग्रह से टकराकर ध्वस्त हो गया था जिस से 2000 से भी ज्यादा छोटे बड़े मलबे  क्या हो गया अंतरिक्ष में फैल गए थे इस तरह की घटनाएं भी अंतरिक्ष के प्रदूषण को बढ़ा रही हैं.

अंतरिक्ष के कचरे को हम दो तरह से परिभाषित कर सकते हैं एक प्राकृतिक दूसरा कृत्रिम.
प्राकृतिक कचरा(Meteroids) जोकि सूर्य की कक्षा में घूमता रहता है और प्राकृतिक रूप से अंतरिक्ष में मौजूद है. जबकि कृत्रिम कचरा पृथ्वी की कक्षा में घूमता है और यह मानव निर्मित स्पेस शटल, स्पेस स्टेशन या उपग्रहों का हिस्सा है. इन्हीं मानवनिर्मित कचरे को ऑर्बिटल डेब्रिस कहते हैं.
नासा के अनुसार करीब 20,000 टुकड़े जो कि टेनिस बॉल के आकार के हैं और 500,000 मार्बल के समान या उससे बड़े हैं खोज लिए गए हैं किंतु लाखों टुकड़े ऐसे हैं जोकि 10 सेंटीमीटर से भी छोटे हैं और उन को खोजना आसान नहीं है और यही अंतरिक्ष मिशन के लिए सबसे बड़ा खतरा है

Thursday, April 6, 2017

राजनीतिक पार्टियों से नैतिकता की उम्मीद?

राजनीति संभावनाओं का खेल है इसमें नैतिकता की कोई गुंजाइश नहीं. जैसे बन पड़े जहां बन पड़े, चाहे किसी से भी गठबंधन करना पड़े, कर लो पर सत्ता में रहना जरूरी है. राजनीति में कोई तराजू नहीं होता जिस पर आप नैतिकता तोल सको और हो भी क्यों ना  राजनीति खेल ही सत्ता का है. और राजनीतिक दल
 परस्पर दुश्मन तो नहीं कि एक दूसरे का  साथ ही ना लें, बात ही ना करें. यह सारा संघर्ष सत्ता के लिए ही तो है. जनता की किसको पड़ी है चुनाव लड़ने में करोड़ों रुपए खर्च हो जाते हैं, अगर सत्ता ना रही तो पैसे कहां से आएंगे  इसलिए भी सत्ता में रहना जरूरी है. फिर भी लोग  राजनीतिक पार्टियों से नैतिकता की उम्मीद करते हैं.

संविधान कुछ भी कहे सारा खेल पैसों का ही है. इसीलिए चुनाव के बाद पार्टियां नैतिकता भूल जाती है सारी नैतिकता चुनाव के पहले. संवैधानिक पद पर बैठा हुआ व्यक्ति भी संविधान कि नहीं  पार्टी की भाषा बोलता है उदाहरण के लिए राज्यपाल को ही  ले ले. हम कई सालों से देखते रहे हैं, राज्यपालों ने संविधान की भावना और आत्मा से खिलवाड़ किया है. उत्तराखंड, कर्नाटक, बिहार तथा अन्य कई राज्यों के मामले  कोर्ट में लंबित है अगर राज्यपाल संविधान के दायरे में रहकर काम करते तो क्या यह मामले अदालत जाते? नहीं. राज्यपालों को भी पार्टियों ने अपना राजनीतिक मोहरा बना लिया है. 
2017 के गोवा, मणिपुर, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड के चुनाव ही देख लीजिए गोवा और मणिपुर में भाजपा ने अल्पमत में होते हुए भी सरकार बना ली और यह फैसला रातो रात हो गया मुख्यमंत्री भी मिल गया और बहुमत भी. छोटी छोटी  पार्टियों ने जिनके पास  दो या तीन विधायक है सरकार बनाने लग गई, तीन सीटें जीतने वाली गोवा फार्वर्ड पार्टी के सभी विधायक मंत्री बन गए. जबकि चुनाव के पहले इस पार्टी का एकमात्र लक्ष्य बीजेपी की सरकार को हटाना था और वही उत्तरप्रदेश और उत्तराखंड में जहां पार्टी को पूर्ण बहुमत मिला हुआ है मुख्यमंत्री चुनने में हफ्तो लग गए.
हालांकि कईयों का कहना है कि मणिपुर और गोवा में भाजपा को कांग्रेस से ज्यादा वोट मिले इसलिए भी भाजपा की सरकार उचित है. परंतु संविधान इसकी इजाजत नहीं देता संविधान विधायकों की बात करता है वोट शेयर कि नहीं. कई बार कम वोट शेयर वाले को ज्यादा सीटें मिल जाती हैं तो क्या उसे सरकार बनाने का न्यौता नहीं मिलेगा.
पिछले साल अरुणाचल प्रदेश और उत्तराखंड में भी संविधान को ताक पर रखकर  राष्ट्रपति शासन लागू किया गया था और अपनी सरकार बनाने की कोशिश केंद्र सरकार ने की थी यह मामला अदालत में ध्वस्त हो चुका है और दोनों सरकारें बहाल हो चुकी हैं.
ऐसा नहीं है कि यह सिर्फ एक सरकार कर रही हैं  कांग्रेस ने भी  बिहार में राष्ट्रपति शासन लगाया था जनता के जनादेश के खिलाफ और 6 दिसंबर 1992 को बाबरी ढांचा गिराए जाने के बाद कांग्रेस ने भाजपा की तीन राज्यों की सरकारों को बर्खास्त कर दिया था, जबकि यह घटना उत्तर प्रदेश में हुई थी, बाकी राज्यों की सरकारों का क्या दोष था? यानी जिसको जब भी मौका मिला येन केन प्रकारेण  सत्ता हासिल करने की कोशिश की गई. 
चुनाव आते ही नेता दल बदल करने लगते हैं जिस पार्टी की हवा देखी उसी में शामिल हो गए सैकड़ों उदाहरण है, सांसद जी इस बार सपा से हैं अगली बार भाजपा से सांसद बन गए. 
लेकिन अब समय आ गया है कि दलबदल के खिलाफ और चुनाव बाद गठबंधन के खिलाफ सख्त कानून बनाया जाए, जिस से कि ऐसी घटनाओं पर विराम लग सके.