Saturday, April 15, 2017

तीन तलाक, हलाला, बहुविवाह क्या खत्म?

भारत का सर्वोच्च न्यायालय तीन तलाक, बहुविवाह और हलाला जैसे कई मुद्दों पर सुनवाई करने वाला है. यह तीन कुरीतियां जोकि मुस्लिम समाज में व्याप्त है और आजकल चर्चा का का कारण बनी हुई है, सुप्रीम कोर्ट इन पर सुनवाई करने वाला है. जहां मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड इन को समाप्त करने के सख्त खिलाफ है
और कहता है कि मुस्लिम समाज ऐसा नहीं चाहता और यह शरीयत और कुरान के खिलाफ है. वही इस के विरोध में बोलने वालों की संख्या भी कम नहीं है. इसे मुस्लिम महिलाओं के मानवाधिकार का हनन भी कहा जा रहा है और भारतीय संविधान में दिए मूल अधिकारों की भावना के खिलाफ भी.
यक्ष प्रश्न यह भी है की 21 वीं शताब्दी में जहां दुनिया आधुनिकीकरण के दौर में आगे बढ़ रही है, वहां इन हजारों साल पुरानी प्रथाओं की जरूरत क्या है? इतिहास गवाह है कि समय के साथ बहुत सारी प्रथाएं खत्म हो जाती हैं और नई प्रथाएं आती जाती हैं. यही प्रकृति का नियम है फिर मुस्लिम संगठन इस प्रथा को जिंदा रखना क्यों चाहते हैं और इसे मुस्लिम धर्म से क्यों जोड़ रहे हैं?
आइए जानते हैं कि इनके मायने क्या है?
बहु विवाह के बारे में हम जानते हैं कि मुस्लिम समाज में पुरुषों को छूट दी गई है कि वह कई सारी शादियां कर सकते हैं. लेकिन यह छूट सिर्फ पुरुषों के लिए है महिलाओं के लिए नहीं. अगर एक मुस्लिम पुरुष दो या तीन शादियां कर लेता है तो क्या वह अपनी सभी बीवियों के प्रति ईमानदार हो सकता है? यह सोचने की बात है और अगर पुरुष ऐसा कर सकते हैं तो महिलाएं क्यों नहीं?
तीन तलाक यह एक ऐसा मसला है जिसमें बहुत सारे लोगों को अभी भी स्पष्टता नहीं है. मुस्लिम समाज में बहुत पहले से ही तीन तलाक होता रहा है. लेकिन इसका जो स्वरूप अभी प्रस्तुत किया जा रहा है वैसा स्वरूप इस्लाम में नहीं है. अगर कोई पति अपनी पत्नी को तलाक देना चाहता है तो उसे यह तीन बार में और 3 महीनों में करना होगा. मतलब हर महीने एक तलाक. हर तलाक के बाद परिवार वाले मध्यस्तता करने की कोशिश करते हैं और फिर भी अगर बात नहीं बनती तो तलाक मान लिया जाता है. लेकिन मुस्लिम युवाओं ने कई इस तरह की विधियां अपना ली हैं जिसमें वह एक ही बार में तीन तलाक बोलकर अपने पत्नी से मुक्ति पा लेते हैं. कईयों ने तो WhatsApp और ईमेल से तलाक दे दिया और मजे की बात है मुस्लिम धर्म गुरुओं ने इसे मान्यता भी दे दी दी. यह सारी लड़ाई इसी प्रथा के खिलाफ है जो इस समय समाज में व्याप्त है.
आइए अब बात कर लेते हैं हलाला पर
हलाला को समझने के लिए मैं आपको एक छोटा सा उदाहरण देता हूं. समझिए दो पति-पत्नियों के बीच आपस में थोड़ी अनबन हो जाती है जो कि आगे चलकर एक झगड़े का रूप ले लेती है और गुस्से में आकर पति अपनी पत्नी को तीन बार तलाक बोल देता है. लेकिन जब उसका गुस्सा शांत होता है और गंभीरता से इस बारे में सोचता है तो उसके होश उड़ जाते हैं और वह समझ नहीं पाता कि वह क्या करें वह सोचता है उसकी पत्नी तो बहुत अच्छी है, समझदार है लेकिन अब तलाक तो हो चुका है अब वह क्या करें, किसके पास जाए? उसके पास दो रास्ते बचते हैं या तो वह झूठ बोले और यह सोच ले उसने तीन तलाक बोला ही या फिर किसी मौलवी के पास जाकर अपनी बात बताएं. अगर वह किसी मौलवी के पास जाता है और उसे अपनी बात बताता है तो मौलवी साहब उसे कहते हैं की तलाक तो अब हो गया है क्योंकि तूने तीन बार तलाक बोल दिया है लेकिन अगर तू अपनी बीवी को वापस पाना चाहता है तो तुझे हलाला करवाना पड़ेगा. यह हलाला क्या है? अपनी पत्नी की शादी किसी दूसरे व्यक्ति के साथ करवा दो और एक दिन या कुछ दिनों के बाद वह पुरुष तुम्हारी पत्नी को तलाक दे दे . तो तुम अपनी पत्नी से दोबारा निकाह करके उसे प्राप्त कर सकते हो अब आप ही सोचिए क्या यह उस महिला के खिलाफ अत्याचार नहीं है? गुस्सा किस को आया? तलाक किसने दिया? और उसकी सजा कौन भुगत रहा है?
गौरतलब है कि कई मुस्लिम देशों में इन प्रथाओं पर रोक लगाई जा चुकी है क्या वहां के मुसलमान मुसलमान नहीं है क्या उस उनका इस्लाम इस फैसले के बाद खतरे में आ गया है. तो फिर मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड हिंदुस्तान में इसकी पैरवी कैसे कर सकता है? जहां पर सभी नागरिकों को समान अधिकार है.
आखिर धर्म के नाम पर हम मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों का हनन कब तक होने देंगे? अब समय आ गया है किस सारे मुस्लिम समाज के लोग इस पर जागे और अपने महिलाओं को उचित स्थान दें.

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