प्रतिज्ञा का जीवन में बहुत महत्व है, प्रतिज्ञा कर लेने से जीवन बदल जाता है. हम इतिहास पर नजर डालें तो जितने भी बड़े महापुरुष हुए हैं उन्होंने जीवन में कभी न कभी एक प्रतिज्ञा ली, एक कठोरतम जीवन जिया उस प्रतिज्ञा को पूरा करने के लिए,तभी वह सफल हुए. आज हम उनका नाम लेते हैं
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शिवाजी ने सिंह गढ़ का किला अपनी माता की प्रतिज्ञा को पूरा करने के लिए जीत लिया था कहते हैं सिंह गढ़ के किले को फतह करने के लिए शिवाजी के पास पर्याप्त सेना नहीं थी सिंह का दुर्ग इतना विशाल था और इतना सुरक्षित कि सामने से कोई भी शत्रु उस पर विजय प्राप्त नहीं कर सकता था. किंतु उतना सुरक्षित किला भी शिवाजी के दृढ निश्चय की वजह से परास्त हुआ. कहते हैं शिवाजी ने अपनी सेना को किले के पीछे से रसियों द्वारा चढ़कर आक्रमण करने की योजना बनाई. भीषणतम युद्ध हुआ यहां तक कि शिवाजी के सैनिक भयभीत होकर भागने लगे थे. जितने भी सेनापति गए थे सारे मारे गए, सेनापतियों को मरा हुआ देखकर सारे सैनिक पीछे की ओर भागने की कोशिश करने लगे तभी पीछे खड़े हुए एक सैनिक ने कहा "अब भागने का कोई रास्ता नहीं मैंने सारी रस्सीयां काट दी है. अब लड़ना ही हमारा एकमात्र धर्म है, पीछे जाओगे तो मारे जाओगे." ऐसा सुनकर सभी सैनिक पूरे मनोबल से शत्रु सेना पर टूट पड़े और कुछ ही घंटों में वह दुर्ग शिवाजी के कब्जे में आ गया. ऐसा किस तरह से संभव हुआ? क्योंकि उन सैनिकों ने दृढ निश्चय के साथ बिना डरे हुए शत्रु सेना पर आक्रमण किया. यह होता है दृढ़ निश्चय का परिणाम. कहते हैं उस किले को शिवाजी ने 1 घंटे के अंदर जीत लिया था.
प्रतिज्ञावान व्यक्ति के जीवन मैं कितनी बार दुख आते हैं, कितनी बार निराशा आती है, कितनी ही बार उनकी मित्र मंडली उन्हें इधर-उधर देखने के लिए विवश करती है. घर वाले नहीं दोस्त लोग भी उन्हें भटकाने की कोशिश करते हैं लेकिन एक बार प्रतिज्ञा लेने के बाद उन्हें यह मानकर चलना चाहिए कि उनकी सारी रस्सीयां, जीवन के सारे बंधन टूट चुके हैं और हम एक महान लक्ष्य के लिए आगे बढ़़ रहे हैं.
कभी भीष्म पितामह ने प्रतिज्ञा ली थी कि मैं आजीवन ब्रम्हचर्य का पालन करुंगा. अपनी प्रतिज्ञा का पालन करने के लिए उन्होंने राजपरिवार सब कुछ छोड़ दिया. एक राजा आजीवन ब्रम्हचर्य का पालन करते हुए एक परिवार की, एक कुटुंब की रक्षा करने के लिए आगे आता है, सिर्फ एक प्रण के कारण.
महाराणा प्रताप ने साधारण प्रतिज्ञा नहीं ली थी. जब तक स्वराज्य स्थापित नहीं कर लूंगा तब तक बर्तनों में भोजन नहीं करूंगा चारपाई पर नहीं सोऊंगा, धरती पर सोऊंगा. और कहते हैं कि अंत समय में उनके प्राण नहीं निकल रहे थे, मरते मरते भी वो कह रहे थे कि मेरा प्रण कौन पूरा कर पायेगा? कहीं तुम लोग समझौता तो नहीं कर लोगे? लेकिन जब सारे सेनापतियों ने तलवार निकालकर यह प्रतिज्ञा ली किन नहीं हम लोग प्रतिज्ञा करते हैं कि हम आपका प्रण पूरा करेंगे. तब वह शांति से मर सकते थे.
इसी तरह डॉक्टर हेडगेवार, संघ के संस्थापक, के बारे में भी कहते हैं कि जब उनका अंतिम संस्कार हो गया तथा श्री गुरुजी ने उन का उत्तराधिकारी होने के नाते उन का पिंड दान करने के लिए अपने हाथ से आटे का पिंड बनाकर कौवे को खिलाने की चेष्टा तो उस कौवे ने उनका पिंड तक नहीं खाया लोग कहने लगे कि डॉक्टर हेडगेवार जैसा अखंड ब्रह्मचारी देवता तुल्य पुरुष जिन्होंने अपने जीवन में इतना क्या आप किया फिर भी उनका पिंड मरणोपरांत पक्षी भी नहीं खा रहे हैं, यह कैसे हो सकता है. लेकिन तभी परम पूजनीय गुरूजी को यह समझ में आया उन्होंने अपने हाथ में पिंड को लेकर यह प्रतिज्ञा लिंग की "हे डॉक्टर हेडगेवार आपने जिस कार्य के लिए अपना जीवन खपा दिया उस कार्य को पूरा करके रहूंगा और इसके अलावा दूसरा कोई कार्य नहीं करूंगा, नहीं करूंगा." ऐसा कहकर जैसे ही उन्होंने पिंड को नीचे रखा कौवा पिंड को लेकर चला गया.
हमारी प्रतिज्ञा से हम सब की शक्तियां और वह शक्तियां भी जो अदृश्य हैं सब अभिभूत होती है. हम किसी न किसी को वचन देते हैं. हमारी प्रतिज्ञा को देवता भी सुनते हैं. हम जब प्रतिज्ञा से हटते हैं देवता भी उसे क्षमा नहीं करते.
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शिवाजी ने सिंह गढ़ का किला अपनी माता की प्रतिज्ञा को पूरा करने के लिए जीत लिया था कहते हैं सिंह गढ़ के किले को फतह करने के लिए शिवाजी के पास पर्याप्त सेना नहीं थी सिंह का दुर्ग इतना विशाल था और इतना सुरक्षित कि सामने से कोई भी शत्रु उस पर विजय प्राप्त नहीं कर सकता था. किंतु उतना सुरक्षित किला भी शिवाजी के दृढ निश्चय की वजह से परास्त हुआ. कहते हैं शिवाजी ने अपनी सेना को किले के पीछे से रसियों द्वारा चढ़कर आक्रमण करने की योजना बनाई. भीषणतम युद्ध हुआ यहां तक कि शिवाजी के सैनिक भयभीत होकर भागने लगे थे. जितने भी सेनापति गए थे सारे मारे गए, सेनापतियों को मरा हुआ देखकर सारे सैनिक पीछे की ओर भागने की कोशिश करने लगे तभी पीछे खड़े हुए एक सैनिक ने कहा "अब भागने का कोई रास्ता नहीं मैंने सारी रस्सीयां काट दी है. अब लड़ना ही हमारा एकमात्र धर्म है, पीछे जाओगे तो मारे जाओगे." ऐसा सुनकर सभी सैनिक पूरे मनोबल से शत्रु सेना पर टूट पड़े और कुछ ही घंटों में वह दुर्ग शिवाजी के कब्जे में आ गया. ऐसा किस तरह से संभव हुआ? क्योंकि उन सैनिकों ने दृढ निश्चय के साथ बिना डरे हुए शत्रु सेना पर आक्रमण किया. यह होता है दृढ़ निश्चय का परिणाम. कहते हैं उस किले को शिवाजी ने 1 घंटे के अंदर जीत लिया था.
प्रतिज्ञावान व्यक्ति के जीवन मैं कितनी बार दुख आते हैं, कितनी बार निराशा आती है, कितनी ही बार उनकी मित्र मंडली उन्हें इधर-उधर देखने के लिए विवश करती है. घर वाले नहीं दोस्त लोग भी उन्हें भटकाने की कोशिश करते हैं लेकिन एक बार प्रतिज्ञा लेने के बाद उन्हें यह मानकर चलना चाहिए कि उनकी सारी रस्सीयां, जीवन के सारे बंधन टूट चुके हैं और हम एक महान लक्ष्य के लिए आगे बढ़़ रहे हैं.
कभी भीष्म पितामह ने प्रतिज्ञा ली थी कि मैं आजीवन ब्रम्हचर्य का पालन करुंगा. अपनी प्रतिज्ञा का पालन करने के लिए उन्होंने राजपरिवार सब कुछ छोड़ दिया. एक राजा आजीवन ब्रम्हचर्य का पालन करते हुए एक परिवार की, एक कुटुंब की रक्षा करने के लिए आगे आता है, सिर्फ एक प्रण के कारण.
महाराणा प्रताप ने साधारण प्रतिज्ञा नहीं ली थी. जब तक स्वराज्य स्थापित नहीं कर लूंगा तब तक बर्तनों में भोजन नहीं करूंगा चारपाई पर नहीं सोऊंगा, धरती पर सोऊंगा. और कहते हैं कि अंत समय में उनके प्राण नहीं निकल रहे थे, मरते मरते भी वो कह रहे थे कि मेरा प्रण कौन पूरा कर पायेगा? कहीं तुम लोग समझौता तो नहीं कर लोगे? लेकिन जब सारे सेनापतियों ने तलवार निकालकर यह प्रतिज्ञा ली किन नहीं हम लोग प्रतिज्ञा करते हैं कि हम आपका प्रण पूरा करेंगे. तब वह शांति से मर सकते थे.
इसी तरह डॉक्टर हेडगेवार, संघ के संस्थापक, के बारे में भी कहते हैं कि जब उनका अंतिम संस्कार हो गया तथा श्री गुरुजी ने उन का उत्तराधिकारी होने के नाते उन का पिंड दान करने के लिए अपने हाथ से आटे का पिंड बनाकर कौवे को खिलाने की चेष्टा तो उस कौवे ने उनका पिंड तक नहीं खाया लोग कहने लगे कि डॉक्टर हेडगेवार जैसा अखंड ब्रह्मचारी देवता तुल्य पुरुष जिन्होंने अपने जीवन में इतना क्या आप किया फिर भी उनका पिंड मरणोपरांत पक्षी भी नहीं खा रहे हैं, यह कैसे हो सकता है. लेकिन तभी परम पूजनीय गुरूजी को यह समझ में आया उन्होंने अपने हाथ में पिंड को लेकर यह प्रतिज्ञा लिंग की "हे डॉक्टर हेडगेवार आपने जिस कार्य के लिए अपना जीवन खपा दिया उस कार्य को पूरा करके रहूंगा और इसके अलावा दूसरा कोई कार्य नहीं करूंगा, नहीं करूंगा." ऐसा कहकर जैसे ही उन्होंने पिंड को नीचे रखा कौवा पिंड को लेकर चला गया.
हमारी प्रतिज्ञा से हम सब की शक्तियां और वह शक्तियां भी जो अदृश्य हैं सब अभिभूत होती है. हम किसी न किसी को वचन देते हैं. हमारी प्रतिज्ञा को देवता भी सुनते हैं. हम जब प्रतिज्ञा से हटते हैं देवता भी उसे क्षमा नहीं करते.
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